स्वस्तिक शब्द संस्कृत से आया है
स्वस्तिक - अर्थात: अच्छा होने के लिए अनुकूल या शुभ।
सू - अच्छा / शुभ
अस्ति - होना
हिंदू धर्म दक्षिणवर्त ( 卐 ) की ओर संकेत करने वाले को 'स्वस्तिक' कहा जाता है, जो 'सूर्य' ,समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है , जबकि वामावर्त प्रतीक ( 卍 ) को 'सवास्तिक' कहा जाता है, जो काली के रात्रि या तांत्रिक पहलू का प्रतीक है।
जैन धर्म में एक स्वस्तिक - सातवें 24 तीर्थकरों ( आध्यातमिक गुरु और उधारकर्ता ) का प्रतीक है जबकि बौद्ध धर्म मे यह बुद्ध के शुभ पदचिन्हों का प्रतीक है ।
कई प्रमुख इंडो-यूरोपीय धर्मो में, स्वस्तिक बिजली के तारों का प्रतीक है, जो गरुड़ देवता और देवताओं के राजा का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि वैदिक हिंदी धर्म मे इन्द्र, प्राचीन यूनानी धर्म में जिज़ (zeus), प्राचीन रोमन धर्म मे बृहस्पति और थॉर में प्राचीन जश्मनिक धर्म।
प्रतिकत्व :
स्वस्तिक चार भागों में बटा है
1. खड़ी रेखा - 'निर्माण' को दर्शाता है।
2. क्षेतिज रेखा - 'विस्तार' को दर्शाती है।
3. उनसे निकले चारों रेखाएं - 'अनंत' को दर्शाती हैं।
4. चार बिंदु - वेदों/ युगों/ अवस्था को दर्शाते हैं।
वेद - ऋग्वेद
यजुर्वेद
सामवेद
अथर्ववेद
युग - सतयुग
त्रेतायुग
द्वापरयुग
कलयुग
अवस्था - जन्म
बालपन
युवक
वृद्ध
स्वस्तिक को समृद्ध का संगीत भी माना जाता है क्योंकि यह ( + ) चिन्ह को भी दर्शाता है।
लाभ :
हर शुभ अवसर पर किसी काम की शुरुआत स्वस्तिक चिन्ह को सर्जन करने से लाभ प्राप्ति होती है। किसी नई वस्तु या सामान के घर में आने से उस पर भी यदि स्वस्तिक चिन्ह का सर्जन करें तो वह अत्यंत लाभकारी होता है। उसे उस वस्तु की सकारात्मक ऊर्जा 108 गुना बढ़ जाती है। इसका प्रयोग करने से व्यक्ति को सुख एवं धन का लाभ होता है।
|| जय महाकाल ||
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